देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरै, याते नीचे नैन
अर्थ- रहीम दास जी कहते है की देने वाला तो कोई और है। वो ईश्वर हमें दिन रात देता ही रहता है। और लोग इतने मूर्ख हैं कि वह सोचते रहते है। कि वह सब कुछ कर रहे है। इससे ज्यादा मूर्ख और कौन हो सकता है।
तरुवर फल नही खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहिम पर काज हित, सम्पति सॅचहि सुजान।
अर्थ- रहीम दास जी कहते है। कि पेड़ अपना फल खुद नही खाता है। और समुद्र अपना पानी खुद नही पीता है। और रहीम दास जी कहते है। कि सज्जन लोग हमेशा दुसरों के लिए जीते है। परोपकारी लोग सुख सम्पति का भी त्याग कर देते है।
जो गरीब सों हित करें, ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।
अर्थ- रहीम दास जी कहते है। जो लोग गरीब की मद्द करते है। हर सम्बव तरीके से उनके हित में सोचते है। ऐसे लोग महान होते है। सुदमा एक गरीब इंसान था। और श्री कृष्ण द्वारिका के राजा थे। लेकिन कृष्ण ने अपनी मित्रता निभाई आज लोग द्वारा कृष्ण और सुदमा की मित्रता की मिसाल दी जाती है।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
च्ंदन विष ब्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग ।
अर्थ- रहीम दास जी कहते है। कि जो लोग अच्छे विचार वाले सज्जन लोग होते है। उन पर दुष्टता का कोई प्रभाव नही पड़ता है। जैसे की चन्दन के पेड़ पर सांप लटके रहता है। लेकिन फिर भी चन्दन अपनी खुशबु नही छोड़ता है।
रहिमन ओछे नरन ते, भलो बैर ना प्रीति।
कोटे-चाटे स्वान के, दुहूॅ भाॅति बिपरीती।
अर्थ- रहीम दास जी इस दोहे में कहते है। कि दृष्ट लोगों से ना मित्रता अच्छी है और ना ही दुश्मानी। उदाहरण के लिए कुत्ता चाहे गुस्से में चाटे या फिर प्यार से तलवे चाटें, दोनों स्थिती ही कष्टदायी होती है। दृष्ट लोगों से जीतना हो सके दूर ही रहना चाहिए ।
रहिमन देख बडिन को, लधु ना दीजिये डारि।
जहा काम आवे सुई, का करी है तरवारी।
अर्थ- रहीम दास जी कहते है। कि बड़ी वस्तु को देखकर हमें छोटी वस्तु को त्याग ही नही करना चाहिए जिस प्रकार जो काम सुई कर सकती है। और वह काम तलवार नही कर सकती है। अथार्त् यह वस्तु का अपना अलग महत्व होता है। चाहे वह छोटी हो या बड़ी हो ।
बिगड़ी बात बने नहि, लाख करो किन कोउ।
रहिमन फांटे दूध को, मथ ना माखन होय।
अर्थ- रहीम दास जी कहना चहाते है। कि एक बार भी बात बिगड़ जाये तो आप कितना भी प्रयास करे लेकिन बात नही बनती है। उदाहरण के लिए जब एक बार दुध फट जाये तो फिर ना ही उसका दूध बनता है। और ना ही माखन। इसलिए हमें कोई भी काम सोच समझ कर करना चाहिए
कही रहिम सम्पति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
विपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत।
अर्थ- रहिम दास जी कहना चाहते है। कि जब तक आपके पास सम्पत्ति होती है। तो आपके पास बहुत सारे दोस्त और मित्र होते है। लेकिन जो विपत्ति में आपका साथ देता है। वही सच्चा मित्र कहलाता है।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखे गायें
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय ।
अर्थ- रहीम दास जी कहना चाहते है। कि व्यक्ति को अपने मन का दुःख अपने मन में ही रखना चाहिए। क्योकि दूसरे लोग आपके दुःख को सुनकर आपको सान्तवना ( दिलासा) तो देते है। लेकिन कोई भी उसके दुःख का दर्द नही बाॅट सकता।
समय पाय फल होत है समय पाय झरी जात
सदा रहें नहिं एक सी, का रहीम पाछितात
अर्थ- रहीम दास जी कहना चाहते है। कि हर चीज समय पर होती है। और वृक्ष में समय आने पर ही फल लगता है। और समय आने पर पेड़ पर झाड़ उगता है। और समय एक जैसा कभी नही होता है। इसलिए हमें दुःख के समय में शोक नही करना चाहिए क्योकि हर दुःख के बाद सुख आता है।
रहिमन चुप हो बैठिए, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।
अर्थ- रहीम दास जी कहना चाहते है। कि चिंता मत करो, सब्र करो क्योकि दिन बीतने में समय नही लगता है। और सबके दिन बीतते है। और जब अच्छे दिन आते है। तो सारे काम अपने आप ही हो जाते है।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े जुड़ गाठ परि जाय।
अर्थ- रहीम दास जी कहना चाहते है। कि आपसी प्रेम और परस्पर सहयोग की भवना रुपी धागा मत टूटने दीजिए क्योकि अगर जब एक बार धागा टूट जाये तो दोबारा जोड़ने पर गाॅठ पड़ जाती है। और वैसे ही रिश्ते टूटने के बाद फिर से जुड़ते है। तो मन में एक गाॅठ पड़ जाती है।
दोहा:- जो बड़ेन को लधु कहें, नही रहीम घटी जाहि।
गिरधर मुरलीधर कहें, कुछ दुःख मानत नहि।
अर्थ:- रहीम दास जी कहना चाहते है। कि किसी भी
बड़े को छोटा कहने से उसका बड़प्पन कम नही होता क्योकि आप गिरघर को कृष्ण कहने से उसकी महिमा कम नही होती हैै।
दोहा:- जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नही, लिपटे रहे भुजंन।
अर्थ:- रहीम दास जी कहना चाहते है। की जिन लोगों का स्वभाव अच्छा होता है, उस लोगों को बुरी संगत भी नही बिगाड़ सकती है। उदाहरण के लिए अगर जहरीला साप सुगंधित चन्दन के वृक्ष पर लिपटने रहने पर भी वह उस पर कोई प्रभाव नही ड़ाल पाता।
दोहा:- दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहि।
जान परत है। काफ पिक, रितु बसंत के माहि।
अर्थ:- रहीम दास जी कहते है। कि कौआ और कोयल रंग में तो एक समान होते है। लेकिन यह अब तक नही बोलते है। तब तक इनकी पहचान नही हो पाती है। लेकिन जब वंसन ऋतु है। तो कोयल की मधुर अवाज से दोनों में अन्तर स्पष्ट हो जाता है।
दोहा:- रुठे साजन मनाइए, जो रुठे सौ बार।
रहिमन फिर फिर पोइए, टूटे मुक्त हार।
अर्थ:- रहीम दास जी कहते है। कि यदि आपका प्रिय सौ बार भी रुठ जाये तो रुठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए क्योकि यदि मोतियों का हार टूट जाये तो उन मोतियों को बार बार धागें मे पिरो लेना चाहिए
दोहा:- खिरा सिर ते काटि के, मालियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए रही सजाय।
अर्थ:- रहीम दास जी कहते है। कि खिरे का कड़वापन को दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद उस पर नमक लगा का धिसा जाता है। और कटुवा मुंह वाले के लिए या कटुवा बोलने वाले के लिए यह सजा है।
दोहा:- रहिमन अंसुवा नयर ढरि, जिस दुःख प्रगट करेइ।
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देह।
अर्थ:- रहीम दास जी कहते है। कि आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट करता है। और यह सत्य बात है। जिसे घर से बाहर निकाल दिया जाता है। वह धर का भेद दूसरो बता देता है।
दोहा:- पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।
अर्थ:- रहीम दास जी कहते है। कि वर्षा ऋतु को देख कर कोयल और रहीम के मन ने मौन धारण कर लिया है। अब तो मेढ़क भी बोलने वाले है। और हमारी तो कोई बात नही पूछता, इसका अभिप्रया है। कि कुछ अवसर ऐसे आते है। जब गुणवान व्यक्ति को चुप रहना पड़ना है। उनका कोई आदर नही करता है। और गुणहीन वाचाल व्यक्यिों को ही बोल बाला होता है।
दोहा:- रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।
अर्थ:- रहीम दास जी कहते है। कि यदि विपत्ति कुुछ समय की होती है। तो वह अच्छी है। क्योकि विपत्ति के समय में सबके बारे में पता चलता है। कि कौन अपना है। और कौन पराया है।